प्राचीन समय में विद्यार्थी केवल गुरुकुल में रहकर ही शिक्षा प्राप्त करते थे। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए गुरुकुल भेजते थे। बच्चे वहां गुरु के सानिध्य में रहते हुए आश्रम की देखभाल करते थे और साथ ही अध्ययन भी करते थे।
वरदराज भी अन्य बच्चों की तरह गुरुकुल भेजा गया था। वह आश्रम में अपने साथियों के साथ समय बिताने लगा।
लेकिन, वरदराज पढ़ाई में बहुत कमजोर था। गुरुजी की किसी भी बात को उसे ठीक से समझ में नहीं आता था। इस कारण वह अपने साथियों के बीच मजाक का विषय बन गया।
उसके सारे सहपाठी अगली कक्षा में पहुँच गए, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पाया। आखिरकार गुरुजी ने उसे कहा, “बेटा वरदराज, मैंने तुम्हारे लिए हर संभव प्रयास किया है, लेकिन अब यही उचित होगा कि तुम अपना समय यहाँ बर्बाद न करो। घर जाओ और वहां अपने परिवार की मदद करो।”
वरदराज ने सोचा, "शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं है," और भारी मन से गुरुकुल छोड़कर घर की ओर चल पड़ा। दोपहर का समय था, और रास्ते में उसे प्यास लगने लगी। उसने देखा कि कुछ महिलाएं पास के कुएं से पानी भर रही थीं। वह उनके पास गया और महिलाओं से पूछा, “आपने इन पत्थरों पर ये निशान कैसे बनाए?”
एक महिला ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बेटा, ये निशान हमने नहीं बनाए। ये तो बार-बार इस कोमल रस्सी के गुजरने से पत्थरों पर बने हैं। जब रस्सी लगातार इस पर रगड़ती है, तो यह पत्थर भी नर्म हो जाता है।"
वरदराज ने सुना और वह सोच में पड़ गया। उसे यह विचार आया, "अगर एक कोमल रस्सी के लगातार रगड़ने से एक ठोस पत्थर में गहरे निशान बन सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं निरंतर अभ्यास करके विद्या प्राप्त कर सकता?"
यह विचार मन में आते ही, वरदराज उत्साह से भर गया। वह वापस गुरुकुल लौट आया और अब पूरी मेहनत और लगन से पढ़ाई में जुट गया। गुरुजी ने भी उसे प्रोत्साहित किया और उसका साथ दिया।
कुछ सालों बाद, वही मंदबुद्धि बालक वरदराज संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बन गया। उसने लघुसिद्धांतकौमुदी, मध्सिद्धांतकौमुदी, सारसिद्धांतकौमुदी और गीर्वाणपदमंजरी जैसी महत्वपूर्ण रचनाओं की रचना की।
शिक्षा (Moral): दोस्तों, अभ्यास की शक्ति अपार होती है। निरंतर अभ्यास से आप कोई भी कार्य पूरी दक्षता से कर सकते हैं। चाहे वह खेल हो, पढ़ाई हो या जीवन का कोई भी अन्य क्षेत्र। बिना अभ्यास के सफलता प्राप्त करना संभव नहीं होता। अगर आप केवल किस्मत के भरोसे बैठेंगे, तो आपको पछतावा ही होगा। इसलिए, अपने लक्ष्य को पाने के लिए अभ्यास, धैर्य, परिश्रम और लगन के साथ मेहनत करें।