महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी ने हाल ही में मुगल शासक औरंगजेब की प्रशंसा की, जिसे लेकर देश में राजनीतिक उबाल आ गया। विरोध के चलते उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया, लेकिन नागपुर में हिंसा भड़क उठी, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए।
जनमानस औरंगजेब को एक बर्बर शासक मानता है, लेकिन कुछ लोग उसे महान बताने का प्रयास करते हैं। किसी शासक की महानता का आकलन उसके शासन की नीतियों, प्रजा के प्रति उसके व्यवहार और तत्कालीन समाज पर उसके प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश, औरंगजेब का मूल्यांकन अक्सर सुनी-सुनाई बातों और धार्मिक पूर्वाग्रहों के आधार पर किया जाता है।
इतिहास बताता है कि किसी राजा को महान तभी माना जाता है जब उसकी नीतियाँ प्रजा के हित में हों, करों का बोझ न्यूनतम हो, धार्मिक भेदभाव न हो और राज्य में कला, साहित्य, व्यापार एवं विज्ञान का विकास हो। लेकिन औरंगजेब की नीतियाँ इसके विपरीत थीं। कुछ मुस्लिम इतिहासकारों ने उसकी कट्टरता को ही उसकी महानता मानकर उसे ‘जिंदा पीर’ की उपाधि दी, जो वास्तविकता से परे है। क्या सिर्फ बड़े भू-भाग पर शासन करने से कोई शासक महान हो जाता है?
औरंगजेब ने अपने भाइयों को धोखे से मारा और पिता शाहजहां को जीवनभर कैद में रखा। उसने अपने बड़े भाई दारा शिकोह को इस्लाम विरोधी बताकर मौत के घाट उतार दिया और उसके कटे सिर को पिता के पास भेज दिया। शाहजहां की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार सामान्य नौकरों और किन्नरों द्वारा किया गया, क्योंकि दरबारियों को भी भय था।
हिंदू अधिकारियों को प्रशासन से निकालने के बाद भी, जब कर वसूली असंभव हो गई, तो उसने कुछ हिंदुओं को पुनः नौकरियों में रखा। लेकिन ऊंचे पदों पर केवल कुछ ही हिंदू थे। उसने अकबर द्वारा समाप्त किए गए जजिया कर को फिर से लागू किया, हिंदू व्यापारियों पर कर बढ़ाया और मुस्लिम व्यापारियों को करमुक्त कर दिया।
उसके शासनकाल में व्यापक स्तर पर विद्रोह हुए, जिनमें राजपूत, जाट, बुंदेलखंडी, सिक्ख और मराठा विद्रोह प्रमुख थे। मराठों के बढ़ते प्रभाव ने उसकी सत्ता को कमजोर कर दिया। उसने बनारस, मथुरा और सोमनाथ सहित सैकड़ों मंदिरों को नष्ट कराया। सिक्खों के नौवें गुरु तेग बहादुर को केवल इस कारण से मरवा दिया गया क्योंकि वे इस्लाम स्वीकारने को तैयार नहीं थे। उसने अपराधियों को इस्लाम कबूल करने पर क्षमा कर देने की नीति अपनाई, जिससे समाज में अराजकता बढ़ी।
औरंगजेब ने झरोखा दर्शन और तुलादान जैसी प्रथाओं को बंद कर दिया, संगीत पर पाबंदी लगा दी और दरबार के सभी कार्य स्वयं करने लगा, क्योंकि वह अपने दरबारियों और परिवार तक पर विश्वास नहीं करता था। उसकी गलत नीतियों के कारण ही मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।
जिस शासक के शासनकाल में बहुसंख्यक समाज पर अत्याचार हुए, वित्तीय संकट गहराया और निरंतर विद्रोह होते रहे, उसे महान कहना इतिहास के साथ अन्याय होगा। ऐसे क्रूर और असफल शासक का महिमामंडन करना केवल मानसिक दिवालियापन ही कहा जा सकता है।